कोविड-19 और विकास व वैश्विक शासन, विज्ञान व प्रौद्योगिकी की उभरती भूमिका

WebDesk
Updated: October 5, 2020 7:06

Dr Sachin Chaturvedi, DG,RIS

डा.सचिन चतुर्वेदी बता रहे हैं कि कोविड—19 के संदर्भ में ग्लोबल गवर्नेंस के लिए विज्ञान, प्रोद्योगिकी व नवाचार की भी नई भूमिका है जो पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।

मौजूदा कोविड-19 संकट के कारण एक महत्वपूर्ण बहस शुरू हुई है जिसमें विज्ञान, प्रौद्योगिकी व नवाचार (एसटीआई) की महत्वपूर्ण भूमिका पर सबका ध्यान केंद्रित है। इसने वैश्विक शासन के संदर्भ में कई कमियों का भी खुलासा किया है। इस संदर्भ में, यह कोविड-19 के बाद के जैविक खतरों के विशिष्ट मुद्दे को और अधिक बारीकी से देखना होगा, साथ ही शासन के संदर्भ में इससे संबंधित चुनौतियां भी हैं।

हालाँकि, इस संकट ने वैश्विक शासन की समस्याओं को भी उजागर किया है। उसने इस सवाल को उठाया है कि वित्तीय तथा अन्य संकटों के बीच क्या वैश्विक संस्थाएं और एजेंसियां इन संकटों का सामना करने के लिए पर्याप्त रूप से मजबूत हैं। चीजों को बदतर बनाने के लिए, विश्व स्वास्थ्य संगठन पर आरोपों तथा अमेरिका के पैर पीछे खींचने से वैश्विक शासन और संस्थानों पर संदेह के बादल घिर गए हैं। । महामारी के बाद की दुनिया में, वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए सामूहिक कार्रवाई में आने वाली बाधाएं पहले से अधिक कड़ी होने की संभावना है।

इस वर्ष, जैविक हथियार सम्मेलन (बीडब्ल्यूसी) की 45 वीं वर्षगांठ पर, संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा कि ‘वैज्ञानिक प्रगति तकनीकी बाधाओं को कम कर रही है जो पहले जैविक हथियारों की क्षमता को सीमित करती थी। इसलिए मैं राज्यों और पार्टियों से तत्काल कन्वेंशन के दायरे में व्यवस्था को अपडेट करने का आह्वान करता हूं ताकि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रगति की समीक्षा हो पाए और जैव-सुरक्षा और जैव-तैयारियों को बेहतर बनाने के लिए सभी एक साथ काम करें जिससे सभी देश जैविक हथियारों के संभावित उपयोग को रोकने और जवाब देने के लिए सुसज्जित हों। 2021 में कन्वेंशन का नौवां समीक्षा सम्मेलन इन और अन्य मुद्दों पर काम करने का एक अवसर है। ’

26 मार्च 2020 को, भारत ने बीडब्ल्यूसी को अधिक प्रभावी बनाने के लिए इसके संस्थागत ढांचे को अधिक से अधिक मजबूत बनाने का आह्वान किया। इसके अलावा, भारत ने पिछले कई वर्षों में लगातार एसटीआई और निरस्त्रीकरण के मुद्दे को उठाया है, यह एक प्रकार से 2017 में 18 अन्य देशों के साथ दिए गए अपने प्रस्ताव को ही आगे बढ़ाने की प्रक्रिया है जिसके तहत भारत ने सैन्य प्रयोजनों के लिए इन प्रौद्योगिकियों के उपयोग से संबंधित चुनौतियों का पता लगाने की आवश्यकता को सामने रखा था। प्रस्ताव ने विश्वास को बहाल करने और निरस्त्रीकरण सत्यापन और हथियारों के नियंत्रण की लागत को कम करने के लिए नई प्रौद्योगिकियों के उपयोग का भी आह्वान किया था। कई विकासशील देशों ने भारत का समर्थन किया। अमेरिका के सीनेटर क्रिस फोर्ड, सहायक सचिव, यूएस स्टेट डिपार्टमेंट, ब्यूरो ऑफ इंटरनेशनल सिक्योरिटी एंड नॉन-प्रोलिफरेशन (आईएसएन), ने ट्वीट किया, “हम जैविक हथियार सम्मेलन की 45 वीं वर्षगांठ को मनाते हुए जैविक हथियारों को रोकने के लिए बीडब्ल्यूसी पर हस्ताक्षर करने वाले दलों की प्रतिबद्धताओं के महत्व पर पुनः बल देते हैं। । कोविड-19 महामारी सभी जैविक जोखिमों को कम करने के लिए बीडब्ल्यूसी से जुड़े सभी पक्षों की प्रतिबद्धताओं के महत्व को रेखांकित करती है। ” तो इस क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को कैसे मजबूत किया जा सकता है?

सबसे पहले हम एक वैश्विक और लचीला लेकिन मजबूत जैवसुरक्षा फ्रेमवर्क तैयार करना होगा जो सार्वजनिक-स्वास्थ्य हस्तक्षेपों की पूरी श्रृंखला को कवर करेगा- वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रारंभिक चेतावनी से, नीति निर्माण, कार्यान्वयन, मूल्यांकन और जैव आपदा से मजबूती से निपटने की क्षमता तक। जैविक युद्ध के लिए राष्ट्रीय स्तर पर तैयारियों की मदद करने के लिए बायोसाइंस विशेषज्ञता और ज्ञान नेटवर्क को तत्काल विकसित करना चाहिए। विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार इसके महत्वपूर्ण घटक होंगे।

निष्कर्ष यह है कि हमारे प्रयास पहुंच समानता और समावेशन के लिए प्रौद्योगिकियों को बनाने पर केंद्रित होने चाहिएं। ओसाका में जी 20 शिखर सम्मेलन में प्रौद्योगिकी सुविधा तंत्र (एजेंडा 2030 का हिस्सा) और एसडीजी के लिए एसटीआई की शुरूआत उत्साहजनक कदम है। इसके अलावा, विश्व नेतृत्व को कोविड-19 के संकट के खिलाफ लड़ाई में एक एक साथ काम करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के दक्षिण एशिया को एक क्षेत्रीय इकाई के रूप में काम करने के आह्वान पर काम करना चाहिए। राष्ट्रवाद कोई हल नहीं है। साथ में हमें ग्लोबल पब्लिक गुड्स यानी वैश्विक सार्वजनिक सामान के लिए आगे बढ़ने की आवश्यकता है जो राष्ट्रीय चिकित्सा और अन्य विशिष्ट क्षमताओं के लिए मददगार हैं करते हैं, साथ ही हमें सामूहिक अनुसंधान व विकास यानी एआरएंडडी को लेकर भी आगे बढ़ने की आवश्यकता है। कई देशों ने विशेषज्ञों के नेतृत्व में संकट प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए अपने सबसे वरिष्ठ डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को एक साथ जोड़ दिया है। यह प्रक्रिया अब केवल दक्षिण-दक्षिण सहयोग तक सीमित न रहकर उत्तर-दक्षिण सहयोग की ओर बढ़ रही है। महामारी के जैविक पहलुओं से निपटने के लिए, वैश्विक जैव सुरक्षा ढांचे की तत्काल आवश्यकता है।

(लेखक नई दिल्ली स्थित ​थिंक टैंक विकासशील देशों के लिए अनुसंधान और सूचना प्रणाली (आरआईएस) के महानिदेशक हैं )

Also Read

Erasing History? Bangladesh’s Path to a Troubled Transition

Explainer: Understanding the growing trend of attacks on Chinese Nationals in Pakistan 

Explainer: Quebec’s quest and struggle for independence from Canada

Explainer: Tracing the Accession of Jammu and Kashmir to India